इक ख़त ने आज मेरा दरवाज़ा खटखटाया है,
बडे़ दिनों के बाद कोई मेरे घर को आया है।
बडे़ मन्नतों बाद इक औलाद कमाया था,
बहुत कष्ट सहकर उसे फौलाद बनाया था।
सौप दिया ज़िगर अपना, बडे़ अफसरों के हाथ,
करेगा सेवा देश की, मिलके साथ-साथ।
देखा जब वहाँ कहानी ही और थी,
छोटों के लिये उनकी जुबानी ही और थी।
रात-दिन बेटा मेरा काम करता रहा,
सुन-सुन के ताने आहे भरता रहा।
करेगा सेवा देश की, सपना ही रहा,
इस लूट की दुनिया में कोई अपना न रहा।।
याद है मुझे, आज भी जो तूने वादा किया था,
मनाऊंगा दिवाली साथ में दावा किया था।
घड़ी है ये वही,
आखिरी बार जब ये दरवाजा खटखटाया था,
लिपटकर तिरंगे में लाल मेरा घर आया था।
आगे की बात अब, मुझे क्या बताना,
क्या होगा मेरा हाल, जानता है जमाना।।

कविता – ख़त
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Shaandar 👍
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